बूँद की तरह- मैं भी टपका,
घन बादल का मटका,
अँधेरी रात में,
जैसे किसी ने धरती पर पटका।
दाने जैसे लाल अनार,
मुझमें भी समाए किस्से हज़ार,
मूंदे हुए पतले छिलके से,
फिर भी खाने वाले लाचार।
करवट लेती झिलमिल नदियां,
मैंने भी सवारी कई बगिया ,
बचपन, यौवन- महीने, साल,
धुंधली- धुंधली कई सदियाँ।
टीम-टीम करता मैं भी जगमगाऊं,
छल-छल करता बहता जाऊं,
क्षितिज पर ढलते सूरज से,
सायंकाल में दौड़ लगाऊं।
Beautiful
Philosophy woven in string of words. Great expression