रंगमंच

के ये जो शोर मचा है गलियों में, इस भोर,
ये जो जुलूस निकला है खूनियों का घनघोर ,
ये जो चहक है चीखों की-कच्छ के वीराने को भेदती,
किसने छेड़ी ये राग,
किसने थामी इस बार,
कठ्पुतलियों की डोर?

 

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